बेटियों अगर अगर शिक्षा लेने के लिए घर की चहारदीवारी लाँघनी पडे तो कभी संकोच मत करना। परिवार; समाज ; देश की प्रगति में भागीदार बनना हम बेटियों की भी ज़िम्मेदारी है।अपने जीवन की बागडोर आपके अपने हाथ में हैं; ये बात हम सबको पता है; कि ये सब एक स्त्री के लिये आसान नहीं है; लेकिन नामुमकिन भी नहीं है।
एक स्त्री के स्वतंत्र विचार; निश्छल हृदय; बेबाक़ आवाज;आत्मविश्वासी व्यक्तित्व; आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और महत्वाकांक्षी स्वाभाव (कुछ कर गुजरने की ललक) को अभी समाज ने स्वीकार करना नहीं सिखा है।
समाज द्वन्द की स्थिति से गुजर रहा है; रूढ़िवादी विचारों को ढोने वाली स्त्री जब रूढ़िवादिता पर कुढ़ाराघात करती है; तो पितृसता पीड़ित महसूस करने लगती है।लोग माता सावित्रीबाई फूले के रूप में देश की पहली अध्यापिका की पूजा करना पसन्द करेंगे; लेकिन आज जब स्त्री एक कदम आगे बढ़कर सामाजिक; पारिवारिक ढांचे में सुधार की बात करती है तो समाज अपने आपको असुरक्षित महसूस करने लगता है; और वहाँ से होता है स्त्री का “चरित्र हनन”।
अरे भाई; धर्म तुम्हारे; बार्डर तुम्हारे; राजनीति तुम्हारी;वंश तुम्हारे ;सामाजिक ताना-बाना तुम्हारा। हमने तो सिर्फ़ अभी बोलना शुरू किया; और आप असुरक्षित महसूस करके भागने लगे; हमने तो अभी इन सब पर अभी दावा भी नहीं किया !! अभी से बेबाक़ स्त्रियाँ आपको अपने लिए ख़तरा लगने लगी। स्त्री की स्वतंत्र आवाज; पुरुष की स्वच्छंदता के लिये घातक है।इसलिए पितृसता स्त्री को पीड़ित बनाकर; फिर उसका संरक्षक होने का दावा करता है; जिसने पीड़ित बनाया वो संरक्षक कैसे हो सकता है? वो तो आपका संरक्षक बनकर भविष्य में उठने वाली आवाज को दबाने की योजना है न की आपकी परवाह!!
सोच बदलो ; समाज बदलेगा।🇮🇳
