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परिवार; समाज ; देश की प्रगति में भागीदार बनना बेटियों की भी ज़िम्मेदारी है

ByMukesh Kumar Kashyap

Feb 26, 2025

बेटियों अगर अगर शिक्षा लेने के लिए घर की चहारदीवारी लाँघनी पडे तो कभी संकोच मत करना। परिवार; समाज ; देश की प्रगति में भागीदार बनना हम बेटियों की भी ज़िम्मेदारी है।अपने जीवन की बागडोर आपके अपने हाथ में हैं; ये बात हम सबको पता है; कि ये सब एक स्त्री के लिये आसान नहीं है; लेकिन नामुमकिन भी नहीं है।
एक स्त्री के स्वतंत्र विचार; निश्छल हृदय; बेबाक़ आवाज;आत्मविश्वासी व्यक्तित्व; आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और महत्वाकांक्षी स्वाभाव (कुछ कर गुजरने की ललक) को अभी समाज ने स्वीकार करना नहीं सिखा है।

समाज द्वन्द की स्थिति से गुजर रहा है; रूढ़िवादी विचारों को ढोने वाली स्त्री जब रूढ़िवादिता पर कुढ़ाराघात करती है; तो पितृसता पीड़ित महसूस करने लगती है।लोग माता सावित्रीबाई फूले के रूप में देश की पहली अध्यापिका की पूजा करना पसन्द करेंगे; लेकिन आज जब स्त्री एक कदम आगे बढ़कर सामाजिक; पारिवारिक ढांचे में सुधार की बात करती है तो समाज अपने आपको असुरक्षित महसूस करने लगता है; और वहाँ से होता है स्त्री का “चरित्र हनन”।

अरे भाई; धर्म तुम्हारे; बार्डर तुम्हारे; राजनीति तुम्हारी;वंश तुम्हारे ;सामाजिक ताना-बाना तुम्हारा। हमने तो सिर्फ़ अभी बोलना शुरू किया; और आप असुरक्षित महसूस करके भागने लगे; हमने तो अभी इन सब पर अभी दावा भी नहीं किया !! अभी से बेबाक़ स्त्रियाँ आपको अपने लिए ख़तरा लगने लगी। स्त्री की स्वतंत्र आवाज; पुरुष की स्वच्छंदता के लिये घातक है।इसलिए पितृसता स्त्री को पीड़ित बनाकर; फिर उसका संरक्षक होने का दावा करता है; जिसने पीड़ित बनाया वो संरक्षक कैसे हो सकता है? वो तो आपका संरक्षक बनकर भविष्य में उठने वाली आवाज को दबाने की योजना है न की आपकी परवाह!!

सोच बदलो ; समाज बदलेगा।🇮🇳

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