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किन्नर अखाड़े का विरोध क्यू?

ByMukesh Kumar Kashyap

Jan 26, 2025

सबसे पहले तो यह जान लीजिये कि ममता कुलकर्णी को जिस किन्नर अखाड़े ने महामंडलेश्वर की उपाधि दी है, उसकी स्थापना ही 2018 में हुई है। संतों के मध्य एक बहुत बड़ा वर्ग है जो इस अखाड़े को अखाड़ा मानता ही नहीं। किन्नर अखाड़े को मान्यता दिए जाने का भी प्रारम्भ से ही विरोध होता रहा है।
फिलहाल 13 प्रमुख अखाड़े हैं, और आप गूगल पर दो शब्द टाइप कर के ही जान जाएंगे कि ये 13 प्रमुख अखाड़े कौन कौन से हैं। खैर…
हिंदुओं में अधिकांश को यह पता भी नहीं कि देश में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठ के शंकराचार्यों के अतिरिक्त भी अनेकों शंकराचार्य घूम रहे हैं। एक दो नहीं, दर्जनों। आपको जान कर आश्चर्य होगा की एक अधोक्षजानन्द देवतीर्थ भी बीसों साल से स्वयं को पुरी शंकराचार्य बताते घूमते हैं। मजेदार यह है कि अटल सरकार के कुछ बड़े मंत्रियों ने उन्हें ही पुरी शंकराचार्य के रूप में बार बार प्रस्तुत किया, जिसके कारण ही पुरी शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी उस पार्टी से नाराज रहते हैं। उनके अतिरिक्त भी अनेकों शंकराचार्य हैं। कुम्भ में भी उन सब के टेंट लगे हुए हैं।
अब यह मत पूछियेगा कि ये लोग कैसे शंकराचार्य हैं? भारत के लोकतंत्र में कुछ भी हो सकता है। कोई स्वयं को शंकराचार्य घोषित कर ले, कोई स्वयं को रामानुजाचार्य घोषित कर ले, लोकतंत्र में उसे रोका नहीं जा सकता। बल्कि अधिकतर सरकारें ही यह सब करती कराती रहती हैं।
तो कुल मिला कर बात यह है कि ममता कुलकर्णी का महामंडलेश्वर घोषित होना कोई बड़ी घटना नहीं है। फिल्मों की गंदगी से ऊब कर उनके साध्वी होने की चर्चा दशकों पुरानी है। सन 2001 में छुपा रुस्तम फ़िल्म के बाद वे न केवल फिल्म इंडस्ट्री से गायब हुईं, बल्कि वे पूरी तरह गायब ही हो गयी थीं। लगभग एक दशक तक उनके बारे में किसी के पास कोई सूचना तक नहीं थी। यह बात मैं इसलिए भी कह रहा हूँ कि उनको ढूंढने वालों में…. छोड़िए! तबसे ही उनके वैराग्य की खबरें आती रही हैं। तो यह भी सम्भव है कि सचमुच उनकी रुचि आध्यात्म में हो और उन्होंने उस दिशा में प्रगति की हो।
जीवन की दिशा कभी भी बदल सकती है। और अधम कार्यों में लिप्त व्यक्ति भी बहुत बार वैरागी हो जाते हैं। तो कम से कम मैं ममता कुलकर्णी की दिशा बदलने पर संदेह नहीं कर रहा। और मुझे लगता है कि किसी भी व्यक्ति के धर्म की डगर पर डेग बढ़ाने की आलोचना नहीं होनी चाहिये। भविष्य में यदि उनका व्यवहार अधार्मिक हुआ तो करेंगे आलोचना।
हाँ, जो एक प्रश्न तैर रहा है कि उनको सीधे ही महामंडलेश्वर कैसे बना दिया गया, तो उसका उत्तर यही है कि उन्होंने जिस यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री ली है, उस यूनिवर्सिटी की मान्यता ही संदेह के घेरे में है, तो पीएचडी पर चर्चा का क्या ही अर्थ? सही कहा न?
बाकी ईश्वर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलते रहने की प्रेरणा दें, उनका कल्याण हो। हम सबका कल्याण हो।

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