• Wed. Jun 18th, 2025

मुकदमों की हो निष्पक्ष जांच तो निर्दोष जाने से बचें जेल? जांच के नाम पर हो जाता है फिर पैसे का खेल? एक जांच ने खोल दी जांच की पोल?

BySirfjanpaksh

Nov 15, 2024

प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा प्रदेश को बेहतर और उत्तम प्रदेश बनाने के साथ-साथ क्राइम मुक्त प्रदेश रखने में भी अहम कार्य करते हुए नजर आए हैं, तो वही कानून व्यवस्था को लेकर भी मजबूत कार्य कर रहे हैं। इसी कड़ी में मुख्यमंत्री द्वारा मीटिंग व वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अधिकारियों को साफ तौर पर दिशा निर्देश दिए जाते हैं कि निर्दोष को जेल ना भेजा जाए और निष्पक्ष जांच कर निष्पक्षता के साथ जीरो टॉलरेंस पर कार्य किया जाए। हालांकि पुलिस के उच्च अधिकारी इस मामले में बेहतर कार्य कर रहे हैं। मगर कहीं ना कहीं सुपरविजन में भी कमी नजर आ रही है। क्योंकि कई केस में देखा जाता है कि सुपरविजन की कमी की वजह से निर्दोष लोग भी जेल जा रहे हैं और जांच में निर्दोषों का जेल जाना बाद में पुलिस के पास पछताने के अलावा कुछ नहीं नजर आता, यानी कि पता होने के बाद भी कि वह निर्दोष को जेल भेज रहे हैं और कुछ नहीं कर पाते। लिहाजा उच्च अधिकारियों को भी जांचों में नियंत्रण रखना होगा। पुलिस सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर जानकारी देते हुए बताया कि कमिश्नरेट के एक मामले ने पुलिस जांच की पोल खोल कर रख दी। जिसमें पुलिस उच्च अधिकारी द्वारा निष्पक्ष जांच कराने पर मामला बड़े ही लेनदेन का निकला और फर्जी मुकदमे में व्यक्ति को जेल भी जाना पड़ा। हालांकि रेप छेड़छाड़ और हनी ट्रैप जैसे मामलों की कमिश्नरेट में बाढ़ सी आ गई है। देखा जाता है कि झूठी या पैसे के लेनदेन को लेकर भी छेड़छाड़ और रेप जैसी शिकायत पर पुलिस मुकदमा दर्ज कर आरोपी को पलक झपकते ही जेल का रास्ता दिखा देती है, यानी कि पहले मुकदमा फिर जेल जांच पड़ताल बाद में, लिहाजा कई मर्तबा देखा गया है कि निर्दोष होने के बाद भी मुकदमा होने पर आरोपी का जेल जाना तय माना जाता है और उसे निर्दोष होने पर भी जेल की हवा खानी पड़ती है। पुलिस के उच्च अधिकारियों द्वारा अपने सुपरविजन में नियंत्रण रखना होगा। जल्दी-जल्दी जांच को खत्म करने के मामले को थोड़ा शांत रखकर निष्पक्ष रूप से जांच पड़ताल करानी होगी, जिससे कि निर्दोषों को जेल जाने से बचाया जा सके। फिलहाल जिस तरह का मामला सामने आए हैं उससे कहीं ना कहीं पुलिस के जांच की किरकिरी भी हुई है, यानी कि पुलिस महकमें जिस तरह पांच पुलिस कर्मचारियों पर निष्पक्ष जांच न करने के गंभीर आरोप लगे हैं। वहीं पुलिस के उच्च अधिकारी द्वारा इस मामले की निष्पक्ष जांच कराई गई। इस मामले में पुलिस कार्य प्रणाली पर भी सवालिया निशान खड़े हुए हैं। इस तरह के अनगिनत मामले भी देखने और सुनने को मिलते हैं। जब किसी निर्दोष के खिलाफ मुकदमा दर्ज होता है तो निष्पक्ष जांच न होकर सिर्फ उसे टारगेट किया जाता है और टारगेट के चलते पलक झपकते ही पुलिस उसे गिरफ्तार कर अपने अधिकारियों की नजर में वाह वाही लूटने का कार्य करती है और निर्दोष व्यक्ति जेल के सलाखों के पीछे पहुंचकर जिंदगी के अहम पलों को काल कोठरी में बिताने का कार्य करता है। पुलिस सूत्रों ने बताया कि निष्पक्ष जांच पड़ताल अगर की जाए तो आधे से ज्यादा ऐसे मुकदमे फर्जी पाए जाएंगे, जिनमें रेप छेड़छाड़ और हनी ट्रैप जैसे मामलों में अक्सर पैसे के लेनदेन या पैसे ठगने के मामले में सामने आए हैं। फिलहाल पुलिस सूत्रों ने जानकारी देते हुए बताया कि उच्च अधिकारियों के जांच को जल्द जल्दी-जल्दी कर खत्म करने के मामले में आईओ जांच को जल्दी खत्म करने का प्रयास करते हुए निर्दोष को भी जेल भेज देते है और मामले में आरोप पत्र भी दाखिल किया जाता है। आरोप पत्र के दाखिल होने पर बाद में न्यायालय में केस का कुछ भी फैसला कुछ भी रहा हो मगर निष्पक्षता पर कहीं ना कहीं सवालिया निशान भी खड़े होते हुए नजर आते हैं। कभी कभी फर्जी मुकदमों में पीड़ित को थाने चौकी के चक्कर काटने पड़ते हैं और उसे लेनदेन भी करना पड़ता है। फैसले के नाम पर और समाज में अपनी इज्जत को बचाने के लिए जो कार्य उसने किया ही नही उसकी भी सजा भुगतनी पड़ती है। पुलिस सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उच्च अधिकारियों को अपने सुपरविजन में गहराई से इस तरह के मामलों में वादी और प्रतिवादी से बयान भी दर्ज करने होंगे और निष्पक्ष रूप से ऐसे मामलों को लेकर निष्पक्षता के साथ जांच पड़ताल भी करानी होगी नहीं तो निर्दोषों का जेल जाना बंद नहीं होगा। और पुलिस कर्मचारियों पर आप भी लगते रहेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *