वाराणसी
होली मिलन और सद्भावना का त्योहार खून की होली बन्द करो, रंगों की होली खेलो होली प्रत्येक भारतीय का त्योहार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान होली को राष्ट्रीय त्योहार घोषित करें अगर रंग खेलने से परहेज तो रंग बेचना भी बंद करे
वाराणसी चुनावी रंग में सब रंगने लगे हैं और नफरत की खाई बढ़ने लगी है। ऐसे में लोगों के दिलों को जोड़ने और नफरत की खाई पाटने के लिये मुस्लिम महिलाओं ने होली की पूर्व संध्या पर मोहब्बत और यकजहती का संदेश दिया। मुस्लिम महिला फाउण्डेशन एवं विशाल भारत संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में मुस्लिम महिलाओं का होली मिलन कार्यक्रम लमही के सुभाष भवन में आयोजित किया गया।
चेहरे पर गुलाल और ढोल की थाप पर होली का गीत गा रही मुस्लिम महिलाओं ने धर्मों के नाम पर फैलाये जा रहे नफरत को अस्वीकार कर दिया और होली पर सबको एक रहने का पाठ पढ़ाया। दुनियां की सारी भौतिकता और धर्म के नाम पर खूनी हिंसा का मुकाबला सिर्फ प्रेम से किया जा सकता है और इसी की जरूरत दुनियां भर को है। जब चेहरे पर गुलाल लगते हैं तो सारे भेदभाव खत्म हो जाते हैं। मुस्लिम महिलाओं ने हिन्दू महिलाओं के साथ बनारसी होली खेली, खुशियां बांटी और प्यार बिखेरा। गुलाल जब हवा में उड़े तो सुभाष भवन की फिजा बदल गयी। भारतीय संस्कृति की राजदूत इन महिलाओं को क्या कोई धर्म के नाम पर बांट पायेगा। इन्हें किसी की परवाह नहीं और न मजहबी कट्टरपंथियों की कोई चिंता। गुलाल और गुलाब से होली खेलकर भारतीय सभ्यता और संस्कृति का परिचय देने वाली मुस्लिम महिलाओं ने सिर्फ मोहब्बत का झंडा बुलंद किया।
मुस्लिम महिलाओं ने गीत गाये ‘हमहू अयोध्या जाईब, रामलला के रंग लगाइब। देशवा विदेशवा क लोगवा अइहे, होली में सब पर रंगवा फेकइहे। कोई न बच पाई हो रामा, हमहू तोके रंग लगाइब हो रामा। कोई न बच पाई हो रामा, हमहू तोके रंग लगाइब हो रामा।’
