जीवन में ऐसे बहुत से लोग है और बच्चे है जिन्हे खुली आसमान के नीचे सोना बहुत आनंदजनक लगता है टिमटिमाते तारों को देखना और उन्हें गिनना और फिर सो जाना लेकिन ऐसी भी बच्चे है और लोग है जिनके नसीब में छत नाम की कोई चीज नहीं न उनके पास कोई आशियाना है घर नाम ये उनकी खुदनसीबी नही बालिक बदकिस्मती है और वो मजबूर हैं उनके पास और कोई चारा नहीं इसके सिवा गर्मी सर्दी बरसात जब भी पड़ती है ऐसे बच्चो की नीद भी उनके नसीब से छीन जाती है भूखे पेट वैसे तो नींद आती नही लेकिन अगर आ भी जाए तो बरसात का पानी और ठंड की बेदर्दी उन्हें सताती है । क्या ये बच्चे और इनका नसीब इन्हे भीख मांगना सीखता है और इन्हें लावारिश की तरह छोड़ देता हैं सड़क पर भीख मांगने के लिए न खेलने को खिलोने न पढ़ने को किताबे न अच्छे कपड़े न खाने को मनपसंद खाना जो सभी बच्चों को मौलिक अधिकार है इनकी आंखों में पेंसिल रबर किताबें और डॉक्टर इंजिनियर के सपने नही होते है बल्कि सपने होते है तो सिर्फ दो वक्त की रोटी के और कभी कभार तो इनके नसीब में इन्हे भूखा ही सोना पड़ता है वो कहते है न भगवान भूखा जागता जरूर है लेकिन भूखा सुलाता नही कभी सड़क पर निकलो और भूख से तड़पते बच्चों से पूछो कुछ खाना है भूख लगी है तो ये बच्चे ये नही बोलने क्या खिलावोगे वो यही बोलेंगे साहेब कुछ खिला दो । क्या बच्चे वो बच्चे है जिन्हे भगवान ने पैदा किया भगवान बच्चों को ऐसा नसीब क्यों लिखेगा । ये बच्चे पैदाइश है हमारे समाज की जब कोई जवान आदमी या औरत छोटे बच्चों के नाम पर भीख मांगता है तब हमे दया आती मासूम बच्चों को देखकर और हम कुछ न कुछ दे देते हैं और ये बच्चे ऐसा ही माहौल देखकर पलते हैं और बड़े होते हैं हम ये क्यों नही कहते हाथ पैर सलामल है अपने बच्चों को मेहनत से कमाकर खिलावों और ये बच्चे जो देखते है बचपन से वही सीखते है और जब थोड़ा बड़े हो जाते है तब इनके हाथों में ये समाज और इनके मां बाप ये कटोरा थमा देते है और भीख मांगना इनका पैशा बन जाता है । और आपको ये जानकर हैरानी होगी की उस कटोरे का भी भी इन बच्चों को किराया देना पड़ता है ये कोई बनी बनाई बात नही बल्कि सर्वे में सामने आया एक भयानक सच है और बच्चे समझते है की ये कोई अच्छा काम है क्योंकि बच्चों को कहा इतनी समझ होती है । और धीरे धीरे बड़े होते जातें है और जब जवानी में पैर रखते है तो इन्हे इस काम के इलावा दूसरा कोई काम आता नही है इनकी भी शादी होती हां बीखरियों की भी शादी होती है और शादी होती है तब बच्चे भी पैदा होंगे और वो बच्चे भी यही काम करेंगे जायज सी बात हैं । और अगर कोई बच्चा थोड़ा बड़ा होता है और उसे लगता है मुझे मेहनत करके खाना है और किसी दुकान पर काम करने लग जाता है और अपना जीवन अच्छे से जीना चाहता है और कोई अच्छा आदमी उन्हें काम पर रख लेता है तो समाज से कोई दरिंदा उठाकर कानून में शिकायत कर देता हैं मालिक के खिलाफ कानूनी कारवाई होती है और बच्चे की नौकरी चली जाती है फिर से समाज उसके हाथ में कटोरा थमा देता और कोई नेक इंसान फिर इनका हाथ नही थामता है और ये समाज ही इन्हे पैदा करता है और बनाता है और इन्हें गाली भी देता हैं । अगर आपको कोई छोटू दुकान पर दिखे तो उसपर तरस मत खाना और उसका अच्छा मत सोचना और अगर सोचना ही है तो उसे अपनाओं उसे पढ़ाओ लिखावों और एक अच्छा इंसान बनावो ताकि समाज में एक उदाहरण बन सके और वो किसी और का भला करें और उसके द्वारा किया गया काम इस प्रकार की समस्या का खात्मा हो सकें भीख नहीं सीख दो
राहुल कुमार शुक्ला
